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फिरयादि / पढ़ीस

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जिउ कुर्छि-कुर्छि<ref>तड़प-तड़प, कसक-कसक</ref> कयि रहि जायी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु।
संसार की बटिया परि जायी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
यी महला अउरू दुमहलन माँ-
अनु-धनु-लछिमी कयिसे पुरयी।
खँड़हर होयि जयिहयिं सोचि लेउ,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
युहु तेल फुलेलु नसेबाजी
फिरि कयिसे सूझी मुटमर्दी।
घुसि जयिहयिं कहाँ उमंगयि यी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
तोबयि<ref>तोपें-युद्व में दूर तक मारक क्षमता का शस्त्र</ref> तरवारी <ref>तलवारें-युद्व में पास की मारक क्षमता</ref> कहाँ रहयिं,
फिरि उनका अउर चलायी को॥
आँखी सिलगुटिया<ref>आँखों कीपलक-हींनता का एक रोग</ref> चूनि जायिं,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
उयि साहेब हँयिं, तुम साहूकार,
उयि फउजदार, तुम जिमींदार।
हर की मुठिया को गहि पायी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
च्यातउ-च्यातउ, स्वाचउ-स्वाचउ,
ओ! बड़े पढ़ीसउ दुनिया के।
कउने कर<ref>किस करवट</ref> ऊँटु बइठि जायी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥
दुनिया की कर<ref>दुनिया की मशीनें, दुनियादारी</ref>, जिंदगी जर <ref>जीवन का प्रारंभ-सामाजिकता</ref>
उइ लीन्हे बइठ जुगाधिन ते।
फिरि देखि लेउ का होयि जायी,
जो भोगयी छोंड़िनि अपनि चालु॥

शब्दार्थ
<references/>