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फिर उठें / राम सेंगर
Kavita Kosh से
शक्ति और
बिखरे उत्साह को बटोर
कोशिश है, फिर उठें, थकान के ख़िलाफ़ ।
शनैः शनैः हो हो कर क्षीण
फड़फड़ाना
हर पल बैठे-ठाड़े ।
लड़कबुद्धि के व्यतिक्रम
लिए लड़खड़ाना
आँखें फाड़े -फाड़े ।
है यह
निष्प्राण फ़लसफ़े का व्यामोह
कोशिश है, फिर उठें, गुमान के ख़िलाफ़ ।
बैलधर्म की तुरही
लेकर पिंपियाना
बहर बेख़याली की ।
बेमक़सद झल्लाना
और किचकिचाना
गत ढीलमढाली की ।
फर्ज़ीबाड़े का
है आँकड़ा न गीत
कोशिश है, फिर उठें, रुझान के ख़िलाफ़ ।