भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर उस वादे के बदले इक नया वादा मिला / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
Kavita Kosh से
फिर उस वादे के बदले इक नया वादा मिला
हर दफा, उसको ढही उम्मीद का मलबा मिला।
देखकर चौंका बटोही, गांव जिसके नाम पर
गांव की चौपाल में वो आदमी तन्हा मिला।
मेरी हालत एक गूंगे से भी बदतर हो गई
रो रहा मेले में बच्चा एक जब गूंगा मिला।
लाल आंखों से हुआ स्वागत, कहा हमने मगर
आपकी बस्ती में हमको प्यार का दरिया मिला।
देख कर बाज़ार के हालात मैं हैरान हूँ
और सब चीज़ें हैं महँगी, आदमी सस्ता मिला।
कैसे कह दें गांव पहुंचेगा बुलंदी पर कभी
गांव का हर आदमी जब कान का कच्चा मिला।
बह चले 'विश्वास' आंसू और नज़रें झुक गईं
बिकने को बेताब जब इक फूल सा चेहरा लगा।