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फिर भी हम ढूँढते हैं / रुस्तम
Kavita Kosh से
हमारी
हताशा की गहराई में से
अभरते हैं
उम्मीद से भरे शब्द।
मौत
सदा बैठी रहती है
हमारे सिरहाने;
फिर भी
हम ढूँढते हैं
जीवन में कोई अर्थ।
अपने विवेक के सहारे
अपने दिनों के अँधेरे में से
हम खींच निकालते हैं
उज़ाले की कोई फाँक--
अपनी रातों को आलोकित करने के लिए।