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फिर मैं फिर से फिरकर आता / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
चूके कहां, कहां हारे हम
हमने कब तोड़ी सीमाएं
किसका वादा कोई इरादा
निभा न पाए, बना न पाए
बंधन थे अधखुले
न स्वतंत्र अधीन नहीं था
बोझील नहीं, न सीना ताने
कदम-कदम पर थे मयखाने
मेरी अपनी जीवन ज्योति
नयी दिशा से आलोकित हैं
मेरा मन जलते अंगारे
हर सपने का सत्य पुकारे
सिक जाए एक रोटी सपना
पक जाए अरमान हमारे
झरते आवेगों से सहते
झीलों से नावों से सहकर
फिर मैं फिर से फिर कर आता
गाथाओं के गीत बनाने
परिणामों के साज सजाने