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फिर से पत्थर, फिर से पानी / प्रदीप कान्त
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फिर से पत्थर, फिर से पानी
कब तक कहिए, वही कहानी
अक्सर चुप-चुप ही रहती है
बिटिया जब से हुई सयानी
मेरा चेहरा पढ़कर समझों
कहूँ कहाँ तक सभी जुबानी
नए नए सलीके है बस
बातें ठहरी वही पुरानी