भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फुटकर शेर-1 / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

बेज़ुबानों को तू अपनी बात मत सुना "शम्स"
कि अपनी लोरी-गाते गाते नींद तुझको आ जायेगी।
(रचनाकाल: 25.07.2002)
 

2.

ये रंगीनियाँ ये नज़ारे कहानियाँ-सी नज़र आती हैं
अब तक जो गुज़री उम्र वो बेमानी-सी नज़र आती है।
(रचनाकाल: 25.07.2002}

3.

तमन्नाओं के भँवर उमंगों के सागर हैं
मेरे मन के भीतर ये कैसे उजाले हैं।
(रचनाकाल: 27.08.2002)

4.

हज़ारों मील हैं दरम्याँ पर तू दूर नहीं है मुझसे
शीशे में अक़्स जैसा नाता है मेरा तुझसे।
(रचनाकाल: 16.09.2002)

5.
 
मैं भरा प्याला हूँ, नाम है मेरा मौहब्बत
जिसको तलब है आए, प्यास बुझा ले अपनी|
(रचनाकाल: 01.11.2002)
 
6.

तेरे बिना ये रातें इतनी क्यों बेचैन लगती हैं,
धड़कने हैं मेरी लेकिन साँसे तेरी लगती हैं।
(रचनाकाल: 01.11.2002)

7.

दीवाना करे देती हैं ये तेरी हसरतों की कोमल बाँहें,
जकडे रख्नना मुझे जब तलक मैं तुझमें घुल न जाऊँ|
(रचनाकाल: 19.04.2003)