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फुटकर शेर-2 / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
1.
उसकी आँख का काजल पिघला होगा रात भर,
बेज़ुबाँ तकिये ने सुना दी दास्ताँ दर्द की।
(रचनाकाल: 24.01.2003)
2.
तेरे आस्ताँ से उठ गए अब सफ़र की हमको फ़िक्र कहाँ,
जहाँ रुक गए वहाँ सो लिए अब मौसमों की ख़बर कहाँ।
(रचनाकाल: 24.01.2003}
3.
दोस्ती करने का चलन एक दम बदली हो गया,
एज, सैक्स, लोकेशन पहले बताना ज़रूरी हो गया।
रचनाकाल: 24.01.2003
4.
धीरे-धीरे इस बर्फ़ का घुल जाना अच्छा लगा,
कतरा-कतरा मुझको तेरा भूल जाना अच्छा लगा|
(रचनाकाल: 08.03.2004)
5.
बाद गुफ़्तगू के हुआ ये एहसास,
कि वो शख़्स मुझसे मुखा़तिब ही न था।
(रचनाकाल: 01.05.2005)
6.
बाद मेरे रह जाएंगी चंद निशानियाँ
दोस्तों के कुछ ख़ुतूत दुश्मनों की गालियाँ|
(रचनाकाल: 23.03.2006)