फूलि उठे कमल से अमल हितू के नैन,
कहै 'रघुनाथ भरे चैन रस सियरे।
दौरि आए भौंर से करत गुनी गुन गान,
सिध्द से सुजान सुख सागर सों नियरे॥
सुरभी सी खुलन सुकवि की सुमति लागी,
चिरिया सी जागी चिंता जनक के हियरे।
धनुष पै ठाढे राम, रवि से लसत आजु,
भोर के से नखत नरिंद भये पियरे॥