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फूलों के देश में / भारत यायावर
Kavita Kosh से
रहती थी एक परी फूलों के देश में । सात समंदर
पार का एक राक्षस उठा ले गया एक बार और
देश के फूल उदास हो गए ।
बचपन में माँ सुनाती थी कहानी । सपने में कौंधता है
बचपन । जब-तब । बचपन में वह कहानी कौंधती है
जब-तब ।
फूल उदास हैं अब भी । देश उदास है । आदमी उदास है ।
सब कुछ उदास है सपने में । सपने के बाहर मैं उदास हूँ ।
ख़ुशी किसने छीन ली है?
मन में कौंधता है राक्षस । उसके पंजों में रोती है परी ।
मैं अनवरत अपनी उदासी के खिलाफ़ लड़ रहा हूँ ।
लड़ रहा हूँ राक्षस के खिलाफ़ । परी की मुक्ति मेरे लिए फूलों की
हँसी है । मेरी मुक्ति है ।
(रचनाकाल:1981)