फूलों पे तबस्सुम नहीं रहता हर दम
क्यों उन पर हो दस्ते-गुलचीं का सितम
मजबूरी बागबां की कोई भी हो ख्वाह
होने न दे निज़ामे-गुलशन बरहम।
फूलों पे तबस्सुम नहीं रहता हर दम
क्यों उन पर हो दस्ते-गुलचीं का सितम
मजबूरी बागबां की कोई भी हो ख्वाह
होने न दे निज़ामे-गुलशन बरहम।