भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल फुललै गमकलै गमकलै हवा! / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठूँठ ठारोॅ केॅ देलकै अजूबा छुअन
प्रीत प्यारोॅ केॅ देलकै अजूबा चुभन
जिन्दगी के टटैलोॅ-सतैलोॅ घड़ी पर
तरसलै, बरसलै-बरसलै हवा!

एक लेलकै लहर चाँदनी रात में
एक देलकै डहर आँख में बात में
रेशमी बाग बन रेशमी के चलन पर
ठमकलै, ठुनकलै-ठुनकलै हवा!

तेज धड़कन चलै साँस के तार पर
एक सिहरन सिहरलै जे सुकुमार पर
पैंजनी के नया रागिनी के थिरक पर
थिरकलै, झमकलै-झमकलै हवा!

जीव जन्तू चमकलै नया भाव सें
तन्तु-तन्तु उचकलै नया चाव सें
नवसृजन के नया ताल-लय पर मगन
मन उमकलै, बिसरल-बिसरलै हवा!

मौज-मस्ती पसरलै नया उम्र पर
एक सुस्ती सँसरलै नया उम्र पर
बेकली के गढ़न, तेज-तीखोॅ नयन पर
अड़कलै, बहकलै-बहकलै हवा!