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फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे / बशीर बद्र
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फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
और इस दिल की तरफ़ बरसे तो पत्थर बरसे
बारिशें छत पे खुली जगहों पे होती हैं मगर
ग़म वो सावन है जो इन कमरों के अन्दर बरसे
कोई बादल हों तो थम जाएँ मगर अश्क़ मिरे
एक रफ़्तार से दिन-रात बराबर बरसे
कौन कहता है कि रंगों के फ़रिश्ते उतरें
कुछ भी बरसे मगर इस बार तो घर-घर बरसे
हम से मजबूर का गुस्सा भी अज़ब बादल है
अपने ही दिल से उठे अपनी ही दिल पर बरसे