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फूल सपनों के खिलेंगे, कामना करते चलें / गिरिराज शरण अग्रवाल
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फूल सपनों के खिलेंगे, कामना करते चलें
साथ लाएँगे, बहारें, फ़ैसला करते चलें
ज़िंदगी सुलझा ही लेगी अपने हर उलझाव को
उलझनें जितनी भी हैं, दिल से जुदा करते चलें
आने वालों को न करने दें अँधेरों का सफ़र
आँधियों के दरमियाँ रोशन दिया करते चले
चाहते हों ज़िंदगी में लोग यदि अपना भला
उनसे यह कहिए कि वे सबका भला करते चलें
उठ न पाएगी कभी दीवार यह अलगाव की
हम ख़फ़ा होने से पहले ही गिला करते चलें