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फूल हँसो, गंध हँसो / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
फूल हँसों गंध हँसों प्यार हँसो तुम
हँसिया की धार! बार-बार हँसो तुम।
हँसो और धार-धार तोड़कर हँसो
पुरइन के पात लहर ओढ़कर हँसो
जाडे की धूप आर-पार हँसों तुम
कुहरा हो और तार-तार हँसो तुम।
गुबरीले आंगन दालान में हँसो
ओ मेरी लौंगकली! पान में हँसो
बरखा की पहली बौछार हँसो तुम
घाटी के गहगहे कछार हँसों तुम।
हरसिंगार की फूली टहनियाँ हँसो
निंदियारी रातों की कुहनियाँ हँसो
बाँहों के आदमकद ज्वार हँसो तुम
मौसम की चुटकियाँ हजार हँसो तुम।