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फूल ही फूल नहीं जीवन में काँटे भी स्वीकार करें / मृदुला झा

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कितनी भी कड़वी हो लेकिन सच्चाई से प्यार करें।

सुख-दुख तो सबके जीवन में यूँ ही आते रहते हैं,
समदर्शी समभावी बनकर सबका हम उपकार करें।

गुरुजन का करना है आदर, मन, वाणी और कर्मों से,
उनके ही आशीष के बल पर सपने सब साकार करें।

जीवन के नन्दन कानन में निर्भय हो सब लोग रहें,
मन वृन्दावन तन हो मथुरा ऐसा ही व्यवहार करें।

मात-पिता परिजन पुरजन का ऋण हम पर है यह जानें,
नित उनकी ही सेवा करके हम अपना उद्धार करें।

जब आये बासन्ती मौसम कोयल छेड़े मीठी धुन,
हम भी मीठे गीत सुनाकर घर-आँगन गुलज़ार करें।