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फूल / ओम पुरोहित कागद
Kavita Kosh से
बूंटै रो काळजो।
जकै नै बो
मिनख रो
मन बिलमावण तांईं
बीं रै सामी राखै
पण
मिनख उण नै
देखै
तोड़ै
सूंघै
अर मसळ नाखै।