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फूल / फ़िरदौस ख़ान

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उसने ख़त में फूल भेजा है
फिर मेरी रफ़ाक़त को
एक-एक लफ़्ज़ में
उन गरम सांसों की
दिलनवाज़ ख़ुशबू है

आज फिर मेरी रूह
मुहब्बत से मुअत्तर है
ज़िन्दगी के आंगन में
चांदनी बिखरी है

मगर बेक़रार दिल
ये कहता है
इन ख़ुशगवार लम्हों में
काश वह ख़ुद आ जाता।