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फेरू कहिया एैभेॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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फेरू कहिया एैभेॅ तोंय
तोरा यादोॅ में
हमरोॅ मोॅन
बैशाखोॅ के धूप नांकी
तपेॅ लागलोॅ छै।
तोरा गेला के बाद
हम्में आभियो
गाँव के वै सब गली में भटकै छियै
जोंन गली में तोंय बार-बार
हमरा बोलावै छेल्होॅ।

की कहियौं पिया
रसता सें ऊ पत्थर हम्में हटाय देनें छियै
जेकरा सें तोरा चोट लागलोॅ छेलै
यै आशा आरो विश्वासोॅ में
कि तोंय जरूर एैभेॅ।

हे हमरोॅ प्राण !
हम्में ई संझबेरा में
वही आमोॅ के बगीचा में
खाड़ी छियै
जहाँ चिड़िया के जोरोॅ सें चिचियैला पर
डरी केॅ हम्में
तोरा छाती में समाय गेली छेलियै
सुखोॅ के ऊ क्षण
अब तांय नै भुलली छियै हम्में
कहोॅ, फेरू कहिया एैभेॅ तोंय।