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बँगला / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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145.

सकल भुवनरेर मुनि जन जिवन अधार बंधु।
कौन बूझ तोमार खियाल<ref>विचारे</ref>। जीव तंजु गाइ रे गोष्ट, एक गोपालेर बन्धु॥
जन्म जन्म आमि कर्म कमाइनु<ref>करिलाम</ref> एइ वार बन्धु शरण समाइनु<ref>करिलाम</ref>॥
बसिब तोमार वाडी अनत<ref>अन्यत्र</ref> ना जाइब। तोमार कीर्ति तजि आर<ref>नाहि</ref> कि गाइब॥
धरनि कथिल जन वाणिये बँगालो! स्वामीर दर्श विना विकल विहालो॥

146.

तोमार विना विरहे विहाल हइल, अमार बंधु कौथाय गेलो।
रहिल संगे संगे हइल नियोगी<ref>विछोही</ref>। बूझि न पारिनु आगि केन केल कोहे।
तक्षण विकल तनु वेनु हइल बैरी। हृदये हनिल जनु कठिन कटारी।
प्रभुर प्रीति लागि नाथ न मिल। मिल स्वामी अंतर्यामि धरनि थाहिल<ref>कथिल</ref>॥

147.

मन प्रान आधार बंधु आछे। गुरु त कृपा करिल कथिल बूझाय।
खो जिलाम कत वन मन चित लाय। निपट निकुंज वन परिलाम जाय॥
भूलिलो लोकेर लाज कुल अभिमान। निवश परिल सुधि बुधि वल ज्ञान।
धरनी सुनिल एक शब्द अमोल। कंठ कोटरि नित हरि हरि बोल॥

148.

थाकिल आमार ठाकुर वाड़ी। अनदेखि देखिल अनसुनि सुनिल।
अलख लखिल अनुहारी<ref>विचारी</ref>।...
पूर्वभेद अपूर्व सुनिल सुनेते लागि, सुखसभारि। सकल तजिल सत संग धरिल,
लंघिल प्रवल पहा
खुलिल कुंजि पाट उदिल से उजियार। चित्र विचित्र चित्र सारि<ref>निरखि</ref>
शोमिल, वरनि न आइल
वरन वरन फुलवारि।
बिन जल मल मेह कमल विकसित। ताहार मूर्ति मनोहर विनय करु हनि 2 तारि।
धरनी धाइल, शरन समाइल<ref>प्रवेशिल</ref> हरिपद हृदय विचारि।
पुलके पुलके पुरुषोत्तम पुन, पूजिल आश अमार॥

शब्दार्थ
<references/>