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बंजर धरती / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
ज़मीन के इस टुकड़े पर
अबकी बार
किसान नहीं रोपेगा
बाजरा, जवार, चावल और मूँग
न रबी की फ़सलें
यहाँ अपनी जड़ें पकड़ेंगी
इस बरस यह भूखण्ड
अपनी मनमर्ज़ी के लिए मुक्त है
अब यहाँ केचुएँ ज़मीन की कितनी ही परतों को खोद सकते हैं
और ज़मीन अपने सीने पर उन खरपतवारों को उगते
देख सकती है
जिन्हें हर बरस
किसान और उसका परिवार
दम लगाते हुए जड़ समेत उखाड़ देता है
इस बार यह ज़मीन
रोपेगी अपने मन की वह फ़सल
जिसकी चाहना को उसने अपने
गर्भ में कभी
अँकुरित किया था