भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंजारे बादल / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बँजारे हैं पहाड़ के बादल
पहनाते हैं पर्वतों पेड़-पौधों को बंगें
एकदम ढाल लेते हैं
चोटी-ढलान खेत-खलिहान
के आकार की बंगें

बंगें, जो निशानियाँ हैं सौभाग्य की
निशानियाँ हैं सुहाग की
बादल की ये बंगें
टूटें न कभी
कोई अपशगुन न घटे
कोई अभागन न बने।