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बंजारे हम / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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जनम जनम के बंजारे हम
बस्ती बाँध न पाएगी ।
अपना डेरा वहीं लगेगा
शाम जहाँ हो जाएगी ।
जो भी हमको मिला राह में
बोल प्यार के बोल दिये ।
कुछ भी नहीं छुपाया दिल में
दरवाजे सब खोल दिये ।
निश्छल रहना बहते जाना
नदी जहाँ तक जाएगी ।
ख्वाब नहीं महलों के देखे
चट्टानों पर सोए हम ।
फिर क्यों कुछ कंकड़ पाने को
रो रो नयन भिगोएँ हम ।
मस्ती अपना हाथ पकड़ कर
मंजिल तक ले जाएगी ।