भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंदर / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
मम्मी! मम्मी! बंदरों का झुंड आया घर में।
ललुए ने पानी की टंकी भी खोल ली,
उसे छेड़कर हमने आफत-सी मोल ली,
देखो, हमें कैसा नाच नचवाया घर में।
एक गया कमरे में झट से उछलकर,
फाड़ दीं किताबें मेरी गुस्से में भरकर,
छोटे-बड़े सबको ही डरपाया घर में।
कौन है जो अब इन्हें घर से निकाले,
देर बड़ी हुई इन्हें डेरा यहाँ डाले,
जो भी मिला वो इन्होंने खूब खाया घर में।
मम्मी! मम्मी! बंदरों का झुंड आया घर में।