भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंद सारी खिड़कियाँ हैं, सो रही हैं / राकेश जोशी
Kavita Kosh से
बंद सारी खिड़कियाँ हैं, सो रही हैं
नींद में गुम बत्तियाँ हैं, सो रही हैं
तुम इन्हें परियों के सपने सौंप दो
इस तरफ कुछ बस्तियाँ हैं, सो रही हैं
किसने पतझड़ को बुलाया है इधर
पेड़ पर कुछ पत्तियाँ हैं, सो रही हैं
इक सितारा घिर गया तूफ़ान में
और जितनी कश्तियाँ हैं, सो रही हैं
याद तुमको कर रहा हूँ इस समय
क्योंकि जो मजबूरियाँ हैं, सो रही हैं
पास मेरे चंद ख़त हैं, साथ ही
ढेर सारी तितलियाँ हैं, सो रही हैं
मैं तुम्हारे ख़्वाब में गुम हो गया
बीच में जो दूरियाँ हैं, सो रही हैं