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बंधु, करें क्या / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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बंधु, करें क्या
बोल राग दरबारी हमको कभी न भाये

रहे सदा ही दूर राजपथ-सभागार से़
सुनींं नहीं टेरें जो आतीं राजद्वार से

देखे हमने
जनपथ पर भी कोट-लाट के बढ़ते साये

दरबारों में छल-प्रपंच के खेले होते
शाही कारिन्दे घर-घर में विपदा बोते

उनके लेखे
परजाजन तो सिंहासन के टूटे पाये

सूर-मीर-ग़ालिब की बोली हमें सुहाती
अपने घर की मैना भी रामायण गाती

यही समस्या
हमने तेवर कबिरा-कुम्भन के अपनाये