भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बगत : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाजतै बगत नै
पकड़ण सारू
मार्या हांफळा
पण
हाथ नीं आयो
भाजतो बगत।

आज
पड़तख नीं
लारलो बगत
निकळग्यो दड़ाछंट
पण
बगत सूं
लारै ऊभ्या
करड़ावण पाळता
कथां मुळकता आपां
म्हां दाईं आगै रैवो
बगत सूं दो पांवडा!