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बग़ैर किसी कवि के / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
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बड़ा मुश्किल है कविता में
पिता को
ज्यों का त्यों लिख देना

लिखता हूँ जब
एक शब्द - पिता
मेरे चालीस बरस
पड़ते जाते हैं छोटे

पिता की छाया
पिता का स्नेह
पिता की मृत्यु
नहीं उतर पाती
कविता में यथावत्

पिता कवि के भीतर
ज्यों के त्यों हैं
भरे-पूरे

मेरा भीतर भरा-पूरा है
पिता से

पिता एक मुकम्मल कविता हैं
बगैर किसी कवि के