बचपन-4 / मुनव्वर राना
मैं वो मेले में भटकता हुआ इक बच्चा हूँ
जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है
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कुछ खिलौने कभी आँगन में दिखाई देते
काश हम भी किसी बच्चे को मिठाई देते
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क़सम देता है बच्चों की, बहाने से बुलाता है
धुआँ चिमनी हमको कारख़ाने से बुलाता है
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किताबों के वरक़ तक जल गए फ़िरक़ापरस्ती में
ये बच्चा अब नहीं बोलेगा बस्ता बोल सकता है
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इन्हे फ़िरक़ापरस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मीं से चूम कर तितली के टूटे पर उठाते हैं
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इनमें बच्चों की जली लाशों की तस्वीरें हैं
देखना हाथ से अख़बार न गिरने पाए
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