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बचपन का चेहरा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
चलो किसी ठेले पर चलकर,
दोनों खाएँ चना चबेना।
आधे पैसे मैं दे दूँगा,
आधे पैसे तुम दे देना।
झूठ बोलना ठीक नहीं है,
लिखा किताबों में है ऐसा।
झूठ बोलने वाला हर पल,
मन ही मन डरता रहता है |
हमने खाई चाट पकौड़ी,
अम्मा से सच-सच कह देना।
चुरा-चुरा कर रात चाँदनी,
फूलों ने भीतर भर ली है।
अपनी कंचन निर्मल काया,
दुग्ध बरफ जैसी कर ली है।
चोरी का इल्जाम भूल से,
भी फूलों पर मत धर देना।
बचपन की यह भोली चोरी,
कभी नहीं चोरी कहलाती।
मात यशोदा कृष्ण कन्हैया,
की चोरी से खुश हो जातीं।
ऐसी मन भावन चोरी को,
श्वास-श्वास भीतर भर लेना।
चोरी की परिभाषा भी तो,
बचपन कहाँ जान पाता है।
जो भी उसे ठीक लगता है,
उठा-उठा कर ले आता है।
वहाँ सिर्फ ईमान लिखा है,
बचपन का चेहरा पढ़ लेना।