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बचपन की बारिश / संतोष श्रीवास्तव

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ये बारिश की बूंदे मुसलसल बरसती
निगाहों में कितनी असीसे उमड़ती
हर एक घर के आंगन की खुशहाली बारिश
महकते दिलों में है मतवाली बारिश

है खेतों में अँखुआ गई धन सारी
हवाओं से सिहरे हरी घास सारी
नदी के लबों पर है लहरे उमड़ती
ये बारिश की बूंदे मुसलसल बरसती

हवा के दरीचों में बूंदें थिरकती
सावन के झूलो में हीरे मचलती
है रांझे के दिल में शमा-सी पिघलती
ये बारिश की बूंदे मुसलसल बरसती

(और इस तरह बारिश का प्यार भरा आलम देखकर मैं बचपन की गलियों में भटकने लगी)

मुझे याद आती है बचपन की बारिश
वो कागज की कश्ती में नटखट-सी बारिश
वो भुट्टो में सिंकती सौंधी-सी बारिश
वो भीगे बदन में ठिठुरती-सी बारिश

कहाँ है ...कहाँ है वह बचपन की बारिश
मेरे जिस्मो-जाँ में भटकती-सी बारिश
कहाँ है ...कहाँ है ...कहाँ है ...