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बचपन के सपने राहों की धूल हो गये / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

बचपन के सपने राहों की धूल हो गये।
आशा सुमन सभी गूलर के फूल हो गये॥

देखा गगन वितान और खरगोशों से हम
हरी धरा की गोद किलकते छिपते फिरते।
देखा घर की खुली खिड़कियाँ भीतर बाहर
शुभ्र पयोद रुई के गालों जैसे तिरते।

सब सपने मासूम दृगों की भूल हो गये।
आशा सुमन सभी गूलर के फूल हो गये॥

कितनी लंबी राह और अँजुरी भर आँसू
फटे पगों में बहता रक्त विगत पर फैला।
धरती हरी हुई बंजर मुरझाई रूखी
हुआ गगन का निर्मल आँचल कितना मैला।

चुभन भरे संघर्ष पगों के शूल हो गये।
आशा सुमन सभी गूलर के फूल हो गये॥