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बचपन - 11 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
बचपन का सीधा सम्बन्ध
मानव के व्यक्तित्व विकास से है
और यह विकास तरंगों पर आधारित है।
हर बचपन की अपनी ही तरंगे होती है
और यही है, श्वांस बचपन की
वरना, मानव और बच्चे में कोई फरक ही न रहे।
इन तरंगों का उद्गम प्रकृति से है
इन तरंगों का हिसाब पूर्व जन्मों के कर्मों से है
इन तरंगों का सम्बन्ध माता-पिता की करनी से है
इन तरंगों का प्रारूप मेहनत में निहित है
और इनका निखार होता है ज्ञान के प्रवास से।
इन्हीं तरंगों से
खिंचती चली जाती है
रेखाएं उमंगों की
और अंत में बनाती है
प्रारूप मानव के व्यक्तित्व का।
इन तरंगों को परिभाषित करना
शायद इतना सरल नहीं है
ये तो अपने-अपने सोच की उत्पत्ति है।