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बचपन - 22 / हरबिन्दर सिंह गिल
Kavita Kosh से
”आज भी सालों बाद
जब माँ-बाप की याद आती है,
कितना छोटा बनकर रह जाता हूँ
अपने आप में।“
जब याद आती है त्याग उनका
कितना बड़ा कर्जदार महसूस करता हूँ
अपने आप को।
जब याद आती है उनके कमाई की
कितना स्वार्थी समझता हूँ
अपने आपको।
कितना असभ्य पा रहा हूँ
अपने आप को,
जो दिल से कभी
उन्हें धन्यवाद न कह सका।
यह सब आज क्यों महसूस हो रहा है
जब सालों बीत गये हैं उन्हें संसार से गये।
शायद इसलिये कि मुझे
आज वह सब कुछ
करना पड़ रहा है
जो उन्होनें बचपन में
मेरे लिये किया था।