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बचपन / मनोज श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बचपन
दर्पण से बाहर
मैं हूँ मनहर,
दर्पण से बाहर
संजोए हुए हूँ
मन के कोने में
चुनमुन बचपन
औंधे-मुंह
किलक-किलक
विहंस-विहंस
धूप और बारिश से
हवा और आतिश से
निरापद, नि:संकोच,
खेल रहा है
कंचे की गोली
डंडा और गुल्ली
लुका-छिपी
संग बच्चे--हमजोली
करते अठखेली.