भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन / सुलोचना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिट्टी के चूल्‍हे पर जलती
गीली लकड़ी की खुशबू
सांझ को तुलसी पर
जलता दिया बाती
शंख की ध्वनि और
माँ की संध्या आरती
मंदिर के घंटे का नाद
दादी का जलता अलाव
बड़ी माँ के माथे पर
कभी ना अस्त होता सूरज
उस छोटे काले कमरे में
खुशी खुशी रहने का धीरज
दस पैसे वाला
गुलाबी बर्फ का गोला
बुढ़िया के बाल और
नारियल लड्डू वाला
वो कंचे, वो गुलेल
धुआँ उड़ाती रेल
गाँव का बड़ा सा मेला
नाटक, जादूगरवाला
लड़खडाकार गिरने पर
कोई माथा चूम रहा है
ज़िंदगी बाईस्कोप सी है
बस रील की जगह
बचपन घूम रहा है