भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन / हरीश करमचंदाणी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुपके से कोई आएगा पीछे से
आँखे बंद कर देगा अपनी हथेलियों से
और बूझने को कहेगा
बताओ कौन
आप जब तक करेंगे कोशिश
याद करने की
खुरदरे हाथों के
कोमल स्पर्श को
अनुभूत करने की
वह झट से खड़ा हो जायेगा सामने
चहक कर पूछेगा
नहीं पहचाना ना
याद आया?
आप झेंप कर मुस्करा भर देंगे


गले में झूलती बिटिया
बताएगी उंगली रख
एल्बम के उस फोटो पर
ये आप ही हैं ना पापा !