भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचाने की कोशिश / शंकरानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो ज़िन्दगियाँ तबाह करने की कोशिश करता है
उसे बचाने की कोशिश में सब लग जाते हैं
वह भी जो ख़ुद को मसीहा से कम नहीं समझता

इस समय कोई भय नहीं होता विश्वासघात का
लज्जा नहीं आती ज़रा भी
जब वह कहता है कुछ भी तो गर्व से कहता है
उसका गर्व खोखला है
चाहता है वह कि सब उस पर भरोसा करें
उसके छल पर भरोसा करें
जबकि उसी छल ने तबाह कर दिया सब कुछ

ये जो बर्बर तरीका है अनसुना करने का
चुपचाप तमाशा देखना
एक रोचक अनुभव है उसके लिए
जो कहीं से भी मज़ा दे सकता है

वह मज़े ले रहा है पर्दे के पीछे से
उसे पल-पल की ख़बर है
जबकि जता रहा है कि उसे कुछ पता नहीं
वह सब कुछ कर रहा है आह्लादित होकर
उसके लिए सबकुछ पहली बार है
ऐतिहासिक है
और वह रोज़ सुबह
इतिहास में अमर होने की लालसा में
जागता है

जिस बेटी को बचाने की वह देता है दुहाई
उसी को कुचलने की योजना बनने देने में
ज़रा भी कसर नहीं छोड़ता वह
इसके लिए उसका चुप रहना काफ़ी है

वह किसी का सगा नहीं हो सकता
जो दूसरे की तकलीफ़ को देखने से पहले
आँखें फेर लेता है
उसकी देह में पत्थर का लहू दौड़ता है ।