मेरा बेटा
नहीं जानता
उस रणबांकुरे का नाम
जो दीवार पर टंगे कलैण्डर में
कुहनियों के बल
जमीन पर रेंग रहा है।
हर रोज
स्कूल जाते वक्त
उसे सैल्युट ठोकता है
और आते ही
रामरमी करता है
अब मैं भी
आश्वस्त होने लगा हूं
मुझे खुब कविताएं लिखनी चाहीए।