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बचे रहने देना / महेश कुमार केशरी
Kavita Kosh से
बचे रहने देना
शहर का कोई
पुराना टूटा-किला
खंँड़हर ।
जहांँ से सुनाई पडे़ उनके
हंँसने-बोलने की आवाजें
बचे रहने देना
पेड़ों की छांँव
जहांँ, प्रेमी लेटे-
हों अपनी प्रेमिका
की गोद
में ।
और, प्रेमिका सहला
रही हो अपने प्रेमी
के बाल
बचे रहने देना
पार्क का कोई अकेला
बेंच, जहांँ, बहुत ही करीब
से वह अपनी सांँसों की गर्माहट
को महसूस कर सकें
और, ले सके
अपने-अपने हाथों
में एक-दूसरे का हाथ
बचे रहने देना
नदी का वह खास किनारा
जहांँ, वे अपने मन की
कह सकें बात ।
एक, ऐसे समय में
जब, कंँक्रीट के जंँगल
तेजी से उगाये जा रहें हैं
और, हमारे बीच से लगभग
गायब, हो चुका है प्रेम!