बच्ची / नाज़िम हिक़मत / अनिल जनविजय
मैं बच्ची हूँ नन्ही
खटखटा रही हूँ सबके दरवाज़े
विलुप्त हो चुकी हूँ मैं
इसलिए तुम्हें दिखाई नहीं दे रही ।
बीत चुके हैं पूरे दस साल
हिरोशिमा में मुझे मरे हुए ।
बच्ची हूँ सात साल की
बच्चे मरने के बाद बड़े नहीं होते ।
मेरे बाल सबसे पहले झुलसे थे,
फिर झुलस गई थीं आँखें ।
मैं बदल गई थी मुट्ठी भर राख में
और बिखर गई थी हवा में ।
मुझे तुमसे अपने लिए
कुछ नहीं चाहिए ।
कागज़ की तरह जल चुकी हूँ मैं
मिठाई भी नहीं खा सकती।
सबके दरवाज़े खटखटा रही हूँ मैं,
जमा कर रही हूँ हस्ताक्षर ।
बच्चों को मारना नहीं चाहिए सिर्फ़ इसलिए
ताकि वे खा सकें मिठाई !
(1956)
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
—
लीजिए, अब यही कविता रूसी अनुवाद में पढ़िए
Назим Хикмет
МЕРТВАЯ ДЕВОЧКА
Откройте, это я стучу,
стучу у каждого крыльца,
невидима для ваших глаз:
нельзя увидеть мертвеца.
Я в Хиросиме умерла.
Года идут, за годом год.
мне было семь и нынче семь-
ребенок мертвый не растет.
Огонь мне волосы спалил,
потом глаза заволокло,
и горстью пепла стала я,
и пепел ветром унесло.
Прошу вас, но не для себя,
не нужен мне ни хлеб, ни рис,
не может даже сахар есть
ребенок , что сгорел как лист.
Поставьте подпись, я прошу
прошу вас, люди всей земли,
чтоб не сжигал огонь детей,
чтоб сахар есть они могли
(1956)
लीजिए, अब यही कविता मूल तुर्की भाषा में पढ़िए
Nazım Hikmet Ran
KIZ ÇOCUĞU
Kapıları çalan benim
kapıları birer birer.
Gözünüze görünemem
göze görünmez ölüler.
Hiroşima'da öleli
oluyor bir on yıl kadar.
Yedi yaşında bir kızım,
büyümez ölü çocuklar.
Saçlarım tutuştu önce,
gözlerim yandı kavruldu.
Bir avuç kül oluverdim,
külüm havaya savruldu.
Benim sizden kendim için
hiçbir şey istediğim yok.
Şeker bile yiyemez ki
kâat gibi yanan çocuk.
Çalıyorum kapınızı,
teyze, amca, bir imza ver.
Çocuklar öldürülmesin
şeker de yiyebilsinler.
(1956)