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बच्ची / सुशान्त सुप्रिय

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हम एजेंसी से
एक बच्ची
घर ले कर आए हैं

वह सीधी-सादी सहमी-सी
आदिवासी बच्ची है

वह सुबह से रात तक
जो हम कहते हैं
चुपचाप करती है

वह हमारे बच्चे की
देखभाल करती है
जब उसका मन
ख़ुद दूध पीने का होता है
वह हमारे बच्चे को
दूध पिला रही होती है
जब हम सब
खा चुके होते हैं
उसके बाद
वह सबसे अंत में
बासी बचा-खुचा
खा रही होती है

उसके गाँव में
फ्रिज या टी. वी. नहीं है
वह पहले कभी
मोटर कार में
नहीं बैठी
उसने पहले कभी
गैस का चूल्ह
नहीं जलाया

जब उसे
हमारी कोई बात
समझ में नहीं आती
तो हम उसे
'मोरोन' कहते हैं
उसका 'आई. क्यू.'
शून्य मानते हैं

हमारा बच्चा भी
अक्सर उसे
डाँट देता है
हम उसकी बोली
उसके रहन-सहन
उसके तौर-तरीक़ों का
मज़ाक़ उड़ाते हैं

दूर कहीं
उसके गाँव में
उसके माँ-बाप
तपेदिक से मर गए थे
उसका मुँहबोला 'भाई'
उसे घुमाने के बहाने
दिल्ली लाया था
उसकी महीने भर की कमाई
एजेंसी ले जाती है

आप यह जान कर
क्या कीजिएगा कि वह
झारखंड की है
बंगाल की
आसाम की
या छत्तीसगढ़ की

क्या इतना काफ़ी नहीं है कि
हम एजेंसी से
एक बच्ची
घर ले कर आए हैं
वह हमसे
टाॅफ़ी या ग़ुब्बारे
नहीं माँगती है
वह हमारे बच्चे की तरह
स्कूल नहीं जाती है

वह सीधी-सादी सहमी -सी
आदिवासी बच्ची
सुबह से रात तक
चुपचाप हमारा सारा काम
करती है
और कभी-कभी
रात में सोते समय
न जाने किसे याद करके
रो लेती है