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बच्चे की ओर से अपने पैर के लिए / पाब्लो नेरूदा / मंगलेश डबराल

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बच्चे का पैर नहीं जानता कि वह अभी एक पैर है
वह एक तितली या एक सेब बनना चाहता है
लेकिन फिर चट्टानें, और काँच के टुकड़े,
सड़कें, सीढ़ियाँ
और इस धरती के कठोर रास्ते
पैर को सिखाते चलते हैं कि वह उड़ नहीं सकता,
और न शाख पर लगा हुआ गोल फल बन सकता है ।
तब बच्चे का पैर
हार गया, युद्ध में
गिर पड़ा,
क़ैद हो गया
जूते में जीने के लिए अभिशप्त ।

धीरे-धीरे रोशनी के बगैर
एक ख़ास ढंग से वह दुनिया से परिचित हुआ,
क़ैद में पड़े दूसरे पैर को जाने बग़ैर
एक अन्धे आदमी की तरह जीवन को खोजता हुआ ।
अँगूठे के वे नाख़ून,
एक जगह इकट्ठा बिल्लौर
सख़्त हो गए, बदल गए
एक अपारदर्शी पदार्थ में, एक सख़्त सींग में
और बच्चे की वे नन्ही पँखुडियाँ
कुचल गईं, अपना सन्तुलन खो बैठीं,
बिना आँखों वाले सरीसृप की शक़्ल में ढल गईं,
एक कीड़े जैसे तिकोने सिर के साथ ।

वे ढँक गए
मौत के लावे के छोटे-छोटे चकत्तों से,
एक अनचाही हुई कठोरता से ।
लेकिन वह अन्धी चीज़ चलती ही रही
बिना झुके हुए, बिना रुके हुए,
घण्टे दर घण्टे ।
एक के बाद एक पैर,
अभी एक आदमी के रूप में,
अभी एक औरत के रूप में,
ऊपर,
नीचे,
खेतों, खदानों,
दूकानों, सरकारी दफ़्तरों से होता हुआ,
पीछे की तरफ़,
बाहर, अन्दर,
आगे की तरफ़,
यह पैर अपने जूतों के साथ काम करता रहा,
उसके पास समय ही नहीं था
कि प्यार करते या सोते समय निर्वस्त्र हो सके ।
एक पैर चला, दो पैर चले,
जब तक समूचा आदमी ही रुक नहीं गया ।

और फिर वह अन्दर चला गया
पृथ्वी के भीतर, और उसे कुछ पता नहीं चला
क्योंकि वहाँ पूरी तरह अन्धेरा था,
उसे पता नहीं चला कि अब वह पैर नहीं है
या अगर वे उसे दफ़नाएँगे तो वह उड़ सकेगा
या एक सेब
बन सकेगा ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल