भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चे / केशव
Kavita Kosh से
धूप में नहाते हैं
बच्चे
धूप में
काग़ज़ की नावें चलाते हैं
बच्चे
धूप में
पतंगों की तरह उड़ना चाहते हैं
बच्चे
धूप में बिलखते हैं
बच्चे भरी दोपहरी में
घर से निकलकर
आखिर कहाँ जाते हैं
बच्चे।