घंटी बजी
स्कूल की छुट्टी हुई... 
बच्चे दौड़ रहे हैं
बीच समुंदर में जैसे लहरें
आ रही और जा रही हैं 
बच्चे होड़ कर रहे हैं 
पकड़ने को बस जल्द से जल्द
कुछ को सीट पाने की जल्दी है
कुछ यूँ ही शोर मचा रहे हैं
और जिनके घर पास हैं 
वे लौट रहे हैं घरों की ओर पैदल - 
आहिस्ते-आहिस्ते
जैसे लौट रहे हों परिंदे 
थोड़े थके-थके से 
जैसे लौट रही हो गायें
सुनहली धूप में हल्की-हल्की धूल उड़ाते हुए... 
बच्चों के जूते धूल में लिथड़े हैं
खुले हुए हैं फीते
कॉलरों पर गर्द और पसीने की मिली-जुली काली-पीली धारियाँ पड़ गईं हैं
कुछ बच्चे विकर्ण पर चल रहे हैं
(इन बच्चों को पाइथागोरस के बारे में नहीं पता फिर भी)
झाड़ झंकाड़ को किनारे करते 
सूखी पत्तियों पर चलने से उत्पन्न चर्र-चर्र की आवाज़ सुनते
छोटे-छोटे पत्थरों को लात मारते-परे धकेलते... 
सड़क पर रेला है
मेला है जैसे किनारों पर 
चाट-खोमचे वाले हैं
बीच उनके एक बुढ़िया है
ज़मीन पर बैठी हुई
टोकनी में कुछ धरे हुए 
शायद सीताफल या पके थोडे़ पुराने से अमरूद या
कुछ और खारा-मीठा 
ख़ुश हैं बच्चे कि कल रविवार है
परसों सोमवार 
फिर मंगल
महीने का आख़िरी दिन है तो
बच्चों के लिए आधा स्कूल आधी छुट्टी है... 
आज बुधवार है 
सुबह-सुबह बच्चे इकट्ठे हैं 
स्कूल के मैदान में 
जैसे बाग़ में ताज़ा फूल खिले हैं
जैसे अमरूद के पेड़ कच्चे-पक्के अमरूदों से लदे हैं!!