बच्चे / शम्भुनाथ तिवारी
बच्चे,
जिनमें फूल-सी खिलखिलाहट और
ओस के बूँद सी तरलता होती है
उनके मन में कोई मैल नहीं
उनमें अव्वल दर्जे की
सचाई और अकृत्रिम सरलता होती है।
बच्चे,
जो नहीं जानते गीता
नहीं पहचानते कुरान
उन्हें पूजा से भी कोई सरोकार नहीं
वे नहीं समझते धर्म और ईमान।
मगर हम उन्हें
एक खाँचे का पत्थर बनाना चाहते हैं
उनकी जिंदगी के हालात को
बद से बदतर बनाना चाहते हैं।
बच्चे,
जिन्हें हम समझते हैं
मिट्टी का लोंदा
उम्र का कच्चा अक्ल का भोंदा
उन्हें हम कोरी स्लेट समझते हैं
और सोचते हैं
इन पर कोई भी मनमानी चल जाएगी
उनके माथे पर कुछ भी लिख दो
एक पत्थर की लकीर बन जाएगी।
मगर बच्चे,
इतने नासमझ नहीं होते
वे अक्ल के कच्चे भी नहीं होते
वे एक अनगढ़ पत्थर हैं
जो तराशने पर
इतने फौलादी हो जाते हैं
जिन्हें तोड़ा न जा सके
उनके इरादों से
उन्हें मोड़ा न जा सके।
बस जरूरी है
उन्हें खास अहमीयत देने की
खुले आकाश तले
अपना आकार खुद निर्मित कर सकें
इसके लिए
उन्हें सहूलियत देने की
फिर वे
किसी खास कौम के नहीं
पूरी मानवता के
अंतिम छोर बन जाएँगे
वक्त आने पर फूल से नरम और
पत्थर से कठोर बन जाएँगे।
तब हम देखेंगे कि
उन्हें मनमाना आकार देने की
हमारी नाकाम कोशिशें कहीं खो गई हैं
फिर
यह दुनिया शायद
कुछ और हो गई है!!