Last modified on 6 जनवरी 2014, at 22:11

बटा‌ऊ! वा मग तैं मति ज‌इयो / हनुमानप्रसाद पोद्दार

बटा‌ऊ! वा मग तैं मति ज‌इयो।
गली भयावनि भारी, जा में सबरौ माल लुट‌इयो॥
ठाढ़ौ तहाँ तमाल-नील इक छैल-छबीलौ छैयो।
नंगे बदन मदन-मद मारत मधुर-मधुर मुसकैयो॥
देखन कौं अति भोरौ छोरा, जादूगर बहु सैयो।
हरत चिा-धन सरबस तुरतहिं, नहिं को‌उ ताहि रुकैयो॥