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बड़का दादा केरो साँकरि बगीचा / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
इस गीत में दुलहे को देखने के लिए घने बगीचे में छिपकर सास के जाने का उल्लेख हुआ है, जहाँ पेड़ की डाली में उसका आँचल फँस जाता है।
बड़का दादा केरो साँकरि बगीचा।
ओहि में उतरल जमाइ हे॥1॥
साँकरि बगीचबा में घनी घनी गछिया।
लटबा<ref>लटें</ref> गेलै ओझराय<ref>उलझ गया</ref> हे॥2॥
छोड़ छोड़ रे लटबा, हमरि अँचरबा।
नैना भरि देखे दे जमाइ हे॥3॥
शब्दार्थ
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