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बड़ा सलोना अपना बचपन / मधुसूदन साहा
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बड़ा सलोना अपना बचपन
चाँदी-सोना अपना बचपन।
बचपन के दिन रंगों वाले,
ढोल-मजीरे-चगों वाले,
भूल नहीं पाता हूँ अब भी
करतब कभी पतंगों वाले,
छत के ऊपर दौड़ लगाता
कोना-कोना अपना बचपन
दूध-मलाई, लड्डू-लाई
आँखें रहती थी ललचाई,
दादा हटिया से लाते थे
दोना भरकर रोज मिठाई,
मस्त बड़ा था सब कुछ खाकर
दोना-दोना अपना बचपन।
कभी न कोई चिन्ता होती
कभी न दुख से अँखिया रोती,
मुझको बाँहों में भरकर नित
मेरी दादी सुख से सोती,
उनके आँचल का पाता था
नरम बिछौना अपना बचपन।