बड़ी उम्मीद / कुमार सुरेश
कितनी हे बातें
जो मेरे नियंत्रण में नहीं हैं
हो जाती हैं नियंत्रित ढंग से
जैसे सूरज बिना आवाज़ अँधेरे को चीर कर
निकल आता है समय पर
तय समय पर बरसती है ओस
नहाकर खाना बनाने की तैयारी करती हैं पत्तियाँ
जाग जाते हैं पक्षी
गिलहरिया काम से लग जाती हैं
चहचहाना और चिंहुकना
सबको बता देता है
दुनिया अभी रहने लायक है
दूध वाला समय पर आ जाता है
चाय मिल जाती है अपने वक़्त
बदस्तूर आ जाता है अख़बार
ट्रेफ़िक और दफ़्तर की मशक्कतों के बीच
कुछ ऐसा हो ही जाता है
नई करवट लेती है उम्मीद
घर वापस लौटना
प्रिय स्त्री के पास
जो मेरा इंतज़ार करती है
हमेशा से बड़ा सुकून है
छलछलाता है बिटिया का संतोष
पडोसी की एक साल की नातिन लगाती है
ता-ता . डा डा की ज़ोर की पुकार
तन्द्रा से जग उठता है घर
अंधेरी घाटी में उतरते वक़्त अकेले
रहता है विश्वास
फिर से सूरज उगेगा
फिर होगा एक खुशनुमा दिन
और वह बड़ी ख़बर-ख़ुशी
लौटेगी बार-बार
छोटी-छोटी बातो में